एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब लकड़हारा नामक रामू रहता था। उसके पास बहुत सीमित संसाधन थे, लेकिन उसकी ईमानदारी और मेहनत की कोई सानी नहीं थी। हर दिन वह जंगल में जाकर लकड़ी काटता और उसे गांव में बेचकर अपने परिवार की जीविका चलाता।
ईमानदारी पर आधारित कहानी(story based on honesty)
रामू का एक छोटा बेटा, मोहन, जिसे अपने पिता की मेहनत और ईमानदारी पर गर्व था, हमेशा उसे देखा करता। मोहन भी अपने पिता की तरह ईमानदार और मेहनती बनना चाहता था। रामू ने अपने बेटे को हमेशा यही सिखाया कि ईमानदारी से बढ़कर कोई अमूल्य चीज नहीं होती।
एक दिन, रामू ने जंगल में लकड़ी काटते वक्त एक पुरानी संदूक पाई। जब उसने संदूक खोला, तो उसमें सोने के सिक्के भरे हुए थे। रामू ने संदूक को ध्यान से देखा और तय किया कि इसे ग्राम प्रधान के पास ले जाना चाहिए, ताकि उसकी सही पहचान और मालिक मिल सके।
ग्राम प्रधान ने संदूक को देखकर आश्चर्यचकित हो गया और उसने रामू की ईमानदारी की सराहना की। ग्राम प्रधान ने कहा, “तुम्हारी ईमानदारी ने हमें अमूल्य खजाना दिया है। यह धन तुम्हारा है, क्योंकि तुम्हारी सच्चाई ने इसे खोजा है।” लेकिन रामू ने विनम्रता से जवाब दिया, “धन्यवाद, प्रधान जी। यह धन मेरे लिए नहीं है। मैं इसे ग्राम सभा के सामूहिक कामों में लगाना चाहूंगा।”
ग्राम प्रधान ने संदूक को देखकर आश्चर्यचकित हो गया और उसने रामू की ईमानदारी की सराहना की। ग्राम प्रधान ने कहा, “तुम्हारी ईमानदारी ने हमें अमूल्य खजाना दिया है। यह धन तुम्हारा है, क्योंकि तुम्हारी सच्चाई ने इसे खोजा है।” लेकिन रामू ने विनम्रता से जवाब दिया, “धन्यवाद, प्रधान जी। यह धन मेरे लिए नहीं है। मैं इसे ग्राम सभा के सामूहिक कामों में लगाना चाहूंगा।”
रामू की ईमानदारी और नेकदिली के कारण, गांववासियों ने उसका सम्मान किया। उन्होंने तय किया कि उस धन का उपयोग स्कूल और अस्पताल बनाने में किया जाएगा ताकि पूरे गांव का फायदा हो सके। रामू की ईमानदारी ने न केवल उसके परिवार के जीवन को बेहतर बनाया बल्कि पूरे गांव की स्थिति को भी ऊंचा उठा दिया।
समय बीतता गया, और मोहन बड़ा हुआ। उसे अपने पिता की ईमानदारी और समाज के प्रति उसकी सेवाओं के बारे में बताने के लिए सम्मानित किया गया। मोहन ने अपने पिता से सीखा था कि ईमानदारी का फल कितना मीठा होता है और उसने भी अपने जीवन में उसी ईमानदारी और मेहनत का पालन किया।
मोहन ने एक दिन अपने पिता को कहा, “पिताजी, आपने हमें सिखाया है कि ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण गुण है। अब मैं भी आपके आदर्शों पर चलकर अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना चाहता हूं।”
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रामू ने अपने बेटे को गले लगाया और कहा, “मेरे बेटे, ईमानदारी ही सबसे बड़ा खजाना है। जब तुम सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलोगे, तो तुम्हारे जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं आएगी।”
समाप्ति पर, मोहन और रामू ने देखा कि ईमानदारी का फल केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए भी अनमोल है। उनकी ईमानदारी ने गांव को एक नई दिशा दी और उन्होंने साबित कर दिया कि सच्चे दिल से किया गया कार्य हमेशा अमूल्य होता है।
इस कहानी से हमें यही सीखने को मिलता है कि ईमानदारी और सच्चाई का मार्ग कभी भी कठिन नहीं होता। यह न केवल हमें अपनी आत्मा की शांति देती है, बल्कि समाज को भी बेहतर बनाती है। रामू और मोहन की कहानी ने यह प्रमाणित किया कि सच्चे मन से किया गया हर काम फलदायी होता है, और ईमानदारी की राह पर चलना ही सबसे सही है।