लोटस टेंपल का इतिहास

लोटस टेंपल का इतिहास

 लोटस टेंपल का इतिहास

परिचय:

लोटस टेंपल, जिसे बहाई हाउस ऑफ़ वर्शिप भी कहा जाता है, भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित एक प्रसिद्ध वास्तुकला संरचना है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय कमल के फूल जैसी आकृति के कारण जाना जाता है और इसे विश्वभर में सराहा जाता है। इसका उद्घाटन 24 दिसंबर 1986 को हुआ था और यह बहाई धर्म का पूजा स्थल है

वास्तुकला और डिज़ाइन:

लोटस टेंपल का डिज़ाइन ईरानी वास्तुकार फ़रीबुर्ज़ साहबा ने किया था। इस मंदिर का रूप कमल के फूल जैसा है, जिसमें 27 स्वतंत्र रूप से खड़ी पंखुड़ियाँ हैं जो तीन-तीन के समूह में नौ दिशाओं में विभाजित हैं। यह संरचना सफेद संगमरमर से बनी हुई है, जिसे ग्रीस के पेंटेली पर्वत से आयात किया गया था।

निर्माण

लोटस टेंपल का निर्माण कार्य 1978 में शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में लगभग 8 साल लगे। इसका निर्माण कार्य 1986 में पूरा हुआ। इस निर्माण में अत्याधुनिक तकनीकों और सामग्री का उपयोग किया गया था, जिससे यह एक अत्यंत मजबूत और टिकाऊ संरचना बन सकी।

महत्व

लोटस टेंपल को एक सार्वभौमिक पूजा स्थल के रूप में देखा जाता है। बहाई धर्म के अनुसार, यह मंदिर सभी धर्मों और आस्थाओं के लोगों के लिए खुला है। यहां कोई मूर्ति या तस्वीर नहीं होती, न ही किसी विशेष धर्म का प्रचार किया जाता है। यह मंदिर एकता, शांति और मानवता की सेवा का प्रतीक है।

प्रमुख आकर्षण:

प्रार्थना सभा: यहां नियमित रूप से प्रार्थना सभाएँ आयोजित की जाती हैं, जिनमें विभिन्न धर्मों के ग्रंथों का पाठ किया जाता है।

शांति का वातावरण: मंदिर के आसपास का क्षेत्र हरे-भरे बागानों से घिरा हुआ है, जो एक शांतिपूर्ण और ध्यानपूर्ण वातावरण प्रदान करता है।

वास्तुकला: इसकी अद्वितीय और सुंदर वास्तुकला विश्वभर के पर्यटकों को आकर्षित करती है

पर्यटन

लोटस टेंपल नई दिल्ली का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। इसे देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि वास्तुकला के प्रेमियों के लिए भी एक अद्वितीय स्थान है।

समापन

लोटस टेंपल मानवता की एकता और शांति का प्रतीक है। यह न केवल बहाई धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि सभी धर्मों और विश्वासों के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। इसकी अद्वितीय संरचना और शांति का वातावरण इसे दुनिया के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक बनाते हैं।

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